नई शिक्षा नीति बहुआयामी, देश का होगा विकास-श्री देवनानी

विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी ने दीक्षांत भाषण में कहा कि 21वीं सदी का इमजिर्ंग इंडिया न केवल आर्थिक और तकनीकी रूप से महाशक्ति बनना चाहता है, बल्कि विश्वगुरु के रूप में उभरने का संकल्प रखता है। इस ध्येय की प्राप्ति के लिए कुछ निश्चित मूल्यो का होना आवश्यक है। ऎसे सभी मानवीय नैतिक मूल्य भगवान राम के चरित्र में दिखाई देते हैं और इसलिए राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा आध्यात्मिक व सांस्कृतिक पुनर्चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। भारतीय धर्म, कर्तव्य बोध कराता है। धर्म का आशय ही कर्तव्य होता है जैसे मातृधर्म, पितृ धर्म, राष्ट्र धर्म इत्यादि, ऎसे दृष्टिकोण है जो धर्म का आशय कर्तव्य ही बताते हैं।

उन्होंने कहा कि धर्म का आशय रूढ़िवादिता नहीं है। आज इस भौतिकवाद के दौर में हमारा यह दायित्व है कि हम वैज्ञानिक तौर तरीकों से वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन और आध्यात्म को आत्मसात करें। आज का युवा स्वयं को परिवार, समाज और राष्ट्र के साथ समायोजित करे, यही उसकी दीक्षा है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के काल में मैकाले द्वारा विकसित शिक्षा पद्धति में भारतीय जीवन मूल्यों का स्थान नहीं था, सिर्फ उनके लिए बाबू तैयार करने वाली शिक्षा थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा में धीरे-धीरे परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की गई। नई शिक्षा नीति 2020 द्वारा इसलिए लाई गई है कि अंतर अनुशासकीय, बहु विषयक, बहुभाषी एवं बहुआयामी दृष्टिकोण के द्वारा एक बालक, एक किशोर एवं एक शोधार्थी भारतीय मूल्यों एवं संवेदनाओं को विकसित करें। नई शिक्षा नीति में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से जुड़े विषयों के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। साथ ही प्राचीन भारतीय संस्कृति, वैदिक ज्ञान, सनातन जीवन मूल्यों के महत्व को भी स्पष्ट किया गया है।

भारत के वर्तमान नेतृत्व में 2047 तक देश विकसित भारत के रूप में स्थापित होगा। भारत रोजगार के अवसरों की अभिवृद्धि के साथ-साथ स्टार्टअप्स को पूरी दुनिया के सामने स्थापित कर रहा है। इस विकसित भारत के स्वप्न को साकार करना आप और हम सबका महत्वपूर्ण दायित्व है। इसके लिए हमें तैयार होना है। यही हमारी शिक्षा और दीक्षा का ध्येय है। नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों को भारतीय संस्कृति के जीवन्त केन्द्र बनाने पर जोर दिया गया है।