ढैंचे की हरी खाद से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं
अजमेर। तबीजी फार्म अजमेर स्थित ग्राहृय परीक्षण केन्द्र के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि बिना सड़े-गले हरे दलहनी पौधे को जब मृदा में नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए दबा दिया जाता हैं। इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। मृदा में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग करने से आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति तो हो जाती हैं परन्तु मृदा संरचना, जल धारण क्षमता एवं सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ाने में इनका कोई योगदान नहीं होता हैं। इन सबकी पूर्ति हरी खाद के द्वारा की जा सकती हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करती हैं। जीवाणुओं का भोजन प्राय कार्बनिक पदार्थ ही होते हैं।
कार्यालय के कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) श्री राम करण जाट ने बताया कि हरी खाद के फसली पौधे के वानस्पतिक भाग तेजी से बढ़ने वाले व मुलायम होने चाहिए। हरी खाद फसल की जड़े गहरी हो ताकि मिट्टी को भुरभुरी बना सकेें एवं नीचे की मिट्टी के पोषक तत्व ऊपरी सतह पर इकठ्ठा हो। हरी खाद फसल की जड़ों में अधिक ग्रंथियां हो ताकि वायु के नाइट्रोजन का अधिक मात्र में स्थिरिकरण कर सकें। हरी खाद के लिए ढैंचा सबसे उत्तम फसल हैं। इसकी बुवाई 60 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से अप्रेल से जुलाई माह में करनी चाहिए। ढैंचे को उगााने के लिए सिंचित अवस्था में मानसून आने से 15 से 20 दिन पूर्व या असिंचित अवस्था में मानसून आने के तुरन्त बाद खेत को तैयार कर बुवाई कर देनी चाहिए। हरी खाद की फसल से अधिकतम कार्बनिक पदार्थ प्राप्त करने के लिए पौधों की अच्छी बढ़वार होने पर नरम अवस्था में 50 प्रतिशत फूल आने पर अर्थात बुवाई के 30-45 दिन बाद डिस्क हैरो द्वारा पलट कर पाटा चला देना चाहिए। हरी खाद से नत्रजन व कार्बनिक पदार्थ के अतिरिक्त अन्य पोषक तत्व जैसे पोटाश, गंधक, जस्ता व लौह तत्व आदि भी प्राप्त होते हैं। इससे रासायनिक उर्वरकों के उपयोग मेें कमी आती हैं। हरी खाद से मृदा भुरभुरी हो जाती हैं एवं वायु संचार व जल धारण क्षमता में वृद्धि होने के साथ ही अम्लीयता व क्षारीयता में भी सुधार होता हैं। मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ने से उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होती हैं।